संधि एवं संधि-विच्छेद Agriculture Supervisor Part 1 | Sandhi krshi paryavekshak

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संधि एवं संधि-विच्छेद


संधि शब्द सम्+धा+कि = सम्+धा+इ से बना है। यह विधा संधि और संयोग की प्रक्रियाओं से प्रभावित है।

संधि वह ध्वनि विकार (फोनेटिक चेंज) होता है, जो दो वर्णों के पास-पास आने के परिणामस्वरूप होता है। संधि का मुख्य उद्देश्य वर्णों के मिलन से निर्मित नए वर्णों को व्याकरण में शामिल करना है, और इसे शब्दों के उच्चारण और लिखने के स्तर पर भी बदलता है। जब ध्वनियों के पास-पास आने के कारण परिवर्तन होता है, तो हम उसे संधि कहते हैं। उदाहरण के रूप में, "युगांतर" में संधि होती है, क्योंकि "युग" और "अंतर" के बीच दो वर्ण पास-पास हैं, जबकि "युगबोध" में संधि नहीं होती, क्योंकि "युग" और "बोध" के बीच वर्णों का मिलन नहीं होता है।

दो वर्गों के पास-पास आने पर जिस वर्ग (स्वर / व्यंजन / विसर्ग) में विकार होता है, उ वर्ण के नाम से संधि कहलाती है।

तीन प्रकार के वर्ण (स्वर, व्यंजन, विसर्ग) होने के कारण तथा इन तीनों में ही परिवर्तन हो जाने के कारण संधि भी तीन प्रकार की होती है—


संधि क्या होती है?

संधि वह ध्वनि विकार है जो दो वर्णों के पास-पास आने के परिणामस्वरूप होता है।

संधि का मुख्य उद्देश्य क्या है?

संधि का मुख्य उद्देश्य वर्णों के मिलन से निर्मित नए वर्णों को व्याकरण में शामिल करना है, और इसे शब्दों के उच्चारण और लिखने के स्तर पर भी बदलता है।

संधि कितने प्रकार की होती है?

संधि तीन प्रकार की होती हैं— स्वर संधि, व्यंजन संधि, और विसर्ग संधि.

स्वर संधि क्या होती है?

स्वर संधि दो स्वरों के मेल से उत्पन्न हुआ विकार होता है, और इसमें पाँच प्रकार होते हैं: दीर्घ स्वर संधि, गुण स्वर संधि, वृद्धि स्वर संधि, यण् संधि, और अयादि संधि.

स्वर संधि के उदाहरण क्या हैं?

उदाहरण के रूप में, "अ + अ = आ" जैसे स्वर संधि के उदाहरण हैं.

संधि के उदाहरण कैसे विचार किए जा सकते हैं?

संधि के उदाहरण को विचार करने के लिए दो शब्दों के आसपास के स्वरों का ध्यान देना आवश्यक है और उनके मेल से संधि को अलग कर सकते हैं.

क्या स्वर संधि के कुछ विशेष रूप हैं?

हां, स्वर संधि के कुछ विशेष रूप भी होते हैं, जिन्हें अलग से विचार किया जाता है, जैसे कि संस्कृत के ऋ स्वर से निर्मित शब्दों का प्रयोग हिंदी में होता है.

स्वर संधि के उदाहरण क्या हैं?

स्वर संधि के उदाहरण में दो स्वरों के मेल से दीर्घ स्वर का उत्पन्न होना, जैसे "अ + अ = आ."

संधि-विच्छेद कैसे किया जा सकता है?

संधि-विच्छेद करने के लिए दोनों शब्दों के स्वरूप का ध्यान रखना आवश्यक होता है, और उनके मेल से संधि को अलग करने का प्रयास किया जा सकता है.

क्या संधि-विच्छेद में कई विकल्प हो सकते हैं?

हां, संधि-विच्छेद में कई विकल्प हो सकते हैं, और उनमें से किसी एक का चयन करना आवश्यक होता है, जो अर्थ से मेल खाता है।


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(1) स्वर संधि

(2) व्यंजन संधि

(3) विसर्ग संधि 


स्वर संधि


दो स्वरों के मेल से उत्पन्न हुआ विकार स्वर संधि कहलाता है। यह विकार पाँच रूपों में होता है इसलिए स्वर संधि के पाँच प्रकार हैं- 

(1) दीर्घ स्वर संधि

(2) गुण स्वर संधि

(3) वृद्धि स्वर संधि

(4) यण् संधि 

(5) अयादि संधि

अपवादस्वरूप स्वर संधि के कुछ विशेष रूप भी प्रचलित हैं, जिन्हें अलग से दिया गया है। हिंदी में अ, आ, ऑ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ कुल ग्यारह स्वर हैं किंतु संस्कृत के ऋ स्वर से निर्मित शब्दों का प्रयोग भी हिंदी में होता है (मातृ, ऋतु), अतः वहाँ की संधि भी है।

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1. दीर्घ स्वर संधि


संस्कृत के लगभग सभी व्याकरणों में संधि के संदर्भ में भी और अन्यत्र भी दो गंभीर समस्याएँ हैं जिससे आज की वैज्ञानिक सोचवाली पीढ़ी को वह व्याकरण अनेक प्रकरणों में गले नहीं उतरता है। (i) संस्कृत के अधिकतर वैयाकरण यह मानते हैं कि भाषा नियमों से आबद होती है इसलिए उसकी हर प्रक्रिया / संक्रिया को नियमों (आदेश) के अनुसार व्याख्यावित किय जा सकता है। (संस्कृत के समाहार-सूत्र शिव के डमरू से निकले हैं) दरअसल भाषा मनुष्य का लौकिक एवं यादृच्छिक व्यवहार है जो मनुष्य के अन्यान्य व्यवहारों की तरह सामान्यीकृत रूप (Uniform Behavior) व्यवहारों के साथ-साथ अपवाद भी लिए चलता है। सब लोग कपड़े पहनते हैं किंतु कोई क़मीज़ पहनता है तो कोई टीशर्ट, जो कमीज़ पहनते हैं उनमें से ज्यादातर उ पेट में दबाकर पहनते हैं तो कुछ लोग पेंट से बाहर रखते हैं। इसलिए अपवादों से भरी इस दुनिया को और इसी तरह भाषा को भी नियम एवं अपवाद दोनों दृष्टियों से देखकर विश्लेषित करना चाहिए। 'दुःख' शब्द में दुर दुम्-दुः का आदेश बताने से वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं हो सकता। कोई भी वक्ता इन आदेशों को ध्यान में रखकर भाषा नहीं बोलता दूर का '५' घोष विसर्ग के अघोष और कंठ्य रूप को कैसे प्राप्त कर लेता है? इस स्वाभाविक प्राकृतिक क्रिया को ठीक उसी प्रकार समझने की आवश्यकता है जैसा कि वह बक्ता के गले में घटती है। दरअसल 'दुःख' का 'ख' अघोष है और कंठ्य है, वह उसके पहले की 'रि' ध्वनि को अघोष बना रहा है । और उसके मूर्धन्य उच्चारण को निरस्त कर कंठ में ही अघोष उच्चारण में रूपांतरित कर रहा है और वह स्वाभाविक रूप से विसर्ग (कंठ्य, और अघोष बन जाता है। विसर्ग का रूपांतरण ऐसे ही हो जाता है, जैसे— दुस्साहस दुःसाहस, दुश्शासन- दुःशासन हो जाता है। यहाँ पर ख (अघोष) के पहले उसे 'दुस्' उपसर्ग से जोड़ना स्वाभाविक है, जैसाकि सभी अघोषों के पहले माना है- (दुस्सह, दुश्चरित्र, दुष्कर्म) न कि दुर उपसर्ग दुर् उपसर्ग को घोष के पहले माना है— दुर्योग, दुराचार आदि। दरअसल 'ख' अघोष है इसके पहले 'दुर्’ घोषयुक्त उपसर्ग से संधि दुस् उपसर्ग करवाना अवैज्ञानिक है। दुस्+ख में 'दुस्' के स् (अघोष) का विसर्ग में बदल जाना स्वाभाविक है। वैसे भी घोष व्यंजनों के पहले 'दुर्' और अघोष व्यंजनों के पहले दुस् का ही योग स्वाभाविक है। बनता है।

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जब एक ही स्वर के दो रूप हस्व (अ, इ, उ) और दीर्घ (आ, ई, ऊ) एक-दूसरे के बाद आ जाएँ तो दोनों मिलकर उसी स्वर का दीर्घवाला स्वर (अर्थात् आ, ई, ऊ) हो जाता है;


जैसे-  अ / आ + अ / आ = आ


यहाँ इस नियम से दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ) के रूप में संधि करना तो आसान है किंतु संधि- विच्छेद करने में दोनों शब्दों के अ/आ वाले स्वरूप का ध्यान रखना आवश्यक है जैसे- मुक्तावली का संधि विच्छेद इन चार विकल्पों में से कोई एक हो सकता है-

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मुक्त अवली

मुक्त + आवली

मुक्ता + अवली

मुक्ता + आवली


क्योंकि मुक्तावली मोतियों की माला को कहते हैं इसलिए इसका संधि विच्छेद मुक्त (बंधनरहित) के साथ नहीं हो सकता क्योंकि उसका कोई अर्थ ही नहीं बैठता (बंधन-रहित लोगों की अवलि (कतार) कैसे हो सकती है) संस्कृत में कतार / माला के लिए अवली और आवली दोनों ही शब्द सही है इसलिए यहाँ उक्त दोनों विकल्प सही है।

अ+अ
अंत्य + अक्षरी अंत्याक्षरी
अंध + अनुगामी अंधानुगामी
अक्ष (धुरी) + अंश अक्षांश
अधिक + अधिक अधिकाधिक
अपर + अहन् अपराहण अपराह्न (अपर के र के कारण न→ण)
अर्ध + अंश अर्धांश
अव (अभी तक की) + अवधि अद्यावधि
अस्त + अचल (पहाड़ ) अस्ताचल
अधिक + अंश अधिकांश
आग्नेय + अस्त्र आग्नेयास्त्र
आनंद + अतिरेक आनंदातिरेक
उत्तर + अधिकार उत्तराधिकार
उत्तर + अर्द्ध उत्तरार्द्ध
उदय + अचल उदयाचल
उप + अध्याय (अधि+आय) उपाध्याय
ऊर्ध्व (ऊपर) + अधर (नीचे) ऊर्ध्वाधर ऊह अपोह ऊहापोह (अटकलों का हटाना, पूरा विचार करना)
काम + अयनी कामायनी
कीट (कीड़ा) + अणु कीटाणु
क्रम + अंक क्रमांक
क्वथन + अंक क्वथनांक (द्रव से गैस बनने का बिंदु)
गत + अनुगत गतानुगतिक
गीत + अंजलि गीतांजलि
गीत + अवली (समूह) गीतावली
ग्राम + अंचल ग्रामांचल
छिद्र + अन्वेषी (खोजनेवाला) छिद्रान्वेषी
जठर (पेट) + अग्नि जठराग्नि (भूख)
जन + अर्दन (पीड़ा) जनार्दन (पीड़ा को दूर करने के लिए पैदा होने वाला, विष्णु, कृष्ण)
जीव + अश्म (पत्थर) जीवाश्म (फोसिल)
तथ्य + अन्वेषण (जाँच) (अनु+एषण) तथ्यान्वेषण
तिल + अंजलि (करसंपुट) तिलांजलि
तीर्थ + अटन (भ्रमण) तीर्थाटन
त्रिपुर (राक्षस का नाम) + अरि त्रिपुरारि
दाव (वन) + अग्नि दावाग्नि
दाव + अनल दावानल
दिवस + अंत दिवसांत
दिवस + अवसान (समाप्ति) दिवसावसान
दिव्य + अस्त्र दिव्यास्त्र
दीप + अवली दीपावली
दृश्य + अवली (पंक्ति) दृश्यावली
देश + अंतर देशांतर
देश + अटन (मात्रा) देशाटन
देह + अतीत (अति+इत) देहातीत (देह से परे)
धर्म + अधिकार धर्माधिकारी
धर्म + अर्थ धर्मार्थ
ध्वंस + अवशेष ध्वंसावशेष
नयन + अंबु (पानी) नयनांबु (आँसू)
नयन + अभिराम (सुंदर) नयनाभिराम
नव + अंकुर नवांकुर
नील + अंचल नीलांचल
न्यून + अधिक न्यूनाधिक
पत्र + अंक पत्रांक
पद + अर्थ पदार्थ
पद + अवनत पदावनत
पर + अधीन पराधीन
परम + अर्थ परमार्थ
पाठ + अंतर (भिन्नता) पाठांतर
पूर्ण + अंक पूर्णांक
पूर्व + अह्न (दिन) पूर्वाह्ण (पूर्वाह्न) [यहाँ ह का स्वर हटता है तथा न् में अ स्वर का आगमन होता है। स्वर के साथ-साथ व्यंजन संधि भी पूर्व के र् के कारण न→ण]
पोषण + अभाव पोषणाभाव
प्र + अंगन प्रांगण (न→ण व्यंजन संधि)
प्र + अर्थी (इच्छुक) प्रार्थी
प्रसंग + अनुकूल प्रसंगानुकूल
बीज़ + अंकुर बीजांकुर
भग्न + अवशेष भग्नावशेष
मत + अंतर मतांतर
मध्य + अवकाश मध्यावकाश
मध्य + अवधि मध्यावधि
मध्य + अहन् (दिन) मध्याहन (मध्याह्न) [यहाँ ह का स्वर हटता है तथा न् में अ स्वर का आगमन होता है। स्वर के साथ-साथ व्यंजन संधि भी मध्य के य् के कारण ध→द्ध एवं अहन् के र् के कारण न→ण]
मन्त्र + अंजलि मन्त्रांजलि
मान + अर्थ मानार्थ
मित + अवकाश मितावकाश
मित + अहन् (दिन) मिताहन (मिताह्न) [यहाँ ह का स्वर हटता है तथा न् में अ स्वर का आगमन होता है। स्वर के साथ-साथ व्यंजन संधि भी मित के त् के कारण ह→ण एवं अहन् के र् के कारण न→ण]
यदि (यद) + अयि (इसे तथा इसके रूप को) यद्यपि (यदि अपि)
रमण (सुख) + अन्न (अहार) रमणान्न
रमण (सुख) + अवस रमणावस
राष्ट्र (देश) + अभिमान राष्ट्राभिमान
लोक + अभिराम लोकाभिराम
लौकिक + अनुभव लौकिकानुभव
विद्या + अविद्या विद्याविद्या
वीर + अर्थ वीरार्थ
वीर + उपकार वीरोपकार
व्रत + अनुष्ठान (कर्म) व्रतानुष्ठान
अ + आ
अन्य + आश्रित अन्याश्रित
आम (आँव) + आशय (स्थान) आमाशय (वह स्थान जहाँ आँव (म्यूकस) बनती है)
आयुध (हथियार) + आगार (स्थान) आयुधागार
आर्य + आवर्त (क्षेत्र) आर्यावर्त
ऐक्य + आत्म ऐक्यात्म (आत्मा की एकता)
कंटक + आकीर्ण (भरा हुआ) कंटकाकीर्ण (PSI-2018)
कुश (डाभ घास) + आसन कुशासन
कुसुम + आकर कुसुमाकर
खग + आश्रय खगाश्रय (घोंसला)
गमन + आगमन गमनागमन
गर्भ + आधान (धारण करना) गर्भाधान
गर्भ + आशय गर्भाशय
गुरुत्व + आकर्षण गुरुत्वाकर्षण
फल + आहार फलाहार
छात्र (छात्रा) + आवास छात्रावास
जन + आकीर्ण (भरा हुआ) जनाकीर्ण (भीड़)
जन + आदेश जनादेश
जल + आशय (स्थान) जलाशय
तुषार (कोहरा) + आच्छन्न (आ+छन्न)(ढका हुआ) तुषाराच्छन्न
दीप + आधार दीपाधार
धर्म + आत्मा धर्मात्मा
धूम (धुआँ ) + आच्छादित (आ+छादित) धूमाच्छादित
पंच + आयत पंचायत
पित्त + आशय पित्ताशय
पूर्ण + आहुति पूर्णाहुति
प्राण + आयाम (विस्तार) प्राणायाम
प्रेम + आसक्त प्रेमासक्त
भय + आकुल भयाकुल
भय + आक्रांत (पीड़ित) भयाक्रांत (PSI-2018)
भय + आनक (नगाड़ा) भयानक
भाव + आविष्ट (भरा हुआ) भावाविष्ट
भ्रष्ट + आचार भ्रष्टाचार
मकर (मछली) + आकृति मकराकृति
मरण + आसन मरणासन्न
मित (थोड़ा) + आहार मिताहार
मेघ + आच्छन्न (आ+ छन्न) मेघाच्छन्न
मेघ + आलय (स्थान) मेघालय
यात + आयात (आना) यातायात
रत्न + आकर रत्नाकर
रस + आभास (प्रतीत होना) रसाभास
लोक + आयुक्त लोकायुक्त
विजय + आकांक्षी (इच्छुक) विजयाकांक्षी
विरह + आतुर विरहातुर
विवाद + आस्पद (पैदा करने वाला) विवादास्पद
विषय + आसक्त (आकृष्ट) विषयासक्त
शत + आयु शतायु (सौ वर्ष की आयु)
शयन + आगार शयनागार
शाक + आहारी शाकाहारी
शीत + आकुल (बेचैन) शीताकुल
शोक + आकुल शोकाकुल
शोक + आतुर (बेचैन) शोकातुर
सत्य + आग्रह सत्याग्रह
सिंह + आसन सिंहासन
सौभाग्य + आकांक्षिणी सौभाग्याकांक्षिणी (सौभाग्य (पति) प्राप्त करने की इच्छा रखनेवाली)
स्थान + आपन्न स्थानापन्न
स्नेह + आकांक्षी (इच्छुक) स्नेहाकांक्षी
स्नेह + आविष्ट स्नेहाविष्ट (PSI-2018)
स्वर्ग + आरोहण स्वर्गारोहण
स्वर्ण + आभ (चमक) स्वर्णाभ
हास्य + आस्पद हास्यास्पद
हिम + आगम हिमागम
हिम + आलय (स्थान) हिमालय
हिम + आवृत (ढका हुआ) हिमावृत


(आ + अ )
क्रिया + अन्वयन ( अनु + अयन) क्रियान्वयन
तथा + अपि तथापि
दीक्षा + अंत दीक्षांत (औपचारिक शिक्षा का समापन)
द्राक्षा (दाख) + अरिष्ट (रस) द्राक्षारिष्ट
द्राक्षा + अवलेह (चटनी) द्राक्षावलेह
द्वारका + अधीश (अधि+ईश) द्वारकाधीश
निशा + अंत निशांत (सुबह)
पुरा (प्राचीन) + अवशेष पुरावशेष
पुरा + अवतंश पुरावतंश (प्राचीन अवशेष )
ब्रह्मा + अंड ब्रह्मांड
महा + अमात्य (मंत्री) महामात्य (PSI-2018)
मुक्ता (मोती) + अवली/आवली (लड़, पंक्ति) मुक्तावली
रचना + अवली/आवली रचनावली
विद्या + अर्जन विद्यार्जन
श्रद्धा + अंजलि (कर-संपुट) श्रद्धांजलि
सत्ता + अंतरण (परिवर्तन) सत्तांतरण
सुधा (अमृत) + अंशु (किरण) सुधांशु (चंद्रमा)
(आ+ आ =आ)
कारा (सीमा) + आगार (घर) कारागार
कारा + आवास कारावास
कृपा + आकांक्षी कृपाकांक्षी
क्रिया + आत्मक क्रियात्मक
चिंता + आतुर चिंतातुर
चिकित्सा + आलय चिकित्सालय
दया + आनंद दयानंद
द्राक्षा (दाख) + आसव (रस) द्राक्षासव
निशा + आनन (मुख) निशानन
प्रेक्षा (देखना)+ आगार प्रेक्षागार (नाटकघर)
प्रेरणा + आस्पद प्रेरणास्पद
भाषा + आबद्ध (बँधा हुआ) भाषाबद्ध
महा + आशय महाशय
रचना + आत्मक रचनात्मक


इ/ई + इ/ई
(इ + इ)
अति (दूर) + इत (है) अतीत
अति + इंद्रिय अतींद्रिय (इंद्रियों से परे)
अति + इव अतीव
अधि + इन अधीन
अभि (विशेष) + इष्ट (प्रिय) अभीष्ट
कवि + इंद्र कवींद्र
गिरि + इंद्र गिरींद्र (हिमालय)
प्रति + इक प्रतीक
प्रति + इत प्रतीत
प्राप्ति + इच्छा प्राप्तीच्छा
मणि + इंद्र मणींद्र
मुनि + इंद्र मुनींद्र
योगिन्+ इंद्र योगींद्र (शिव, न् का लोप)
रवि + इंद्र रवींद्र
हरि + इच्छा हरीच्छा
(इ + ई = ई)
अधि + ईक्षक (देखनेवाला) अधीक्षक
अधि + ईक्षण अधीक्षण
अधि + ईश्वर अधीश्वर
अभि (विशेष) + ईप्सा (इच्छा) अभीप्सा (शिव)
कपि (वानर) + ईश कपीश (हनुमान/सुग्रीव)
क्षिति + ईश क्षितीश (पृथ्वी के ईश= राजा)
गिरि + ईश गिरीश (हिमालय)
परि + ईक्षित परीक्षित
परि + ईक्षक परीक्षक
परि + ईक्षण परीक्षण
परि + ईक्षा परीक्षा
प्रति + ईक्षा (देखना) प्रतीक्षा (PSI-2018)
प्रति + ईक्षित प्रतीक्षित
मुनि + ईश्वर मुनीश्वर
योगिन् + ईश्वर योगीश्वर (शिव न् का लोप)
वारि (जल) + ईश वारीश (समुद्र)
वि + ईक्षक वीक्षक (invigilator)
वि + ईक्षण वीक्षण (Invigilation)
हरि + ईश हरीश
{ई + इ}
फणी (साँप) + इंद्र फणींद्र (शेषनाग)
महती (बड़ी) + इच्छा महतीच्छा
मही (पृथ्वी) + इंद्र महींद्र (राजा)
यती + इंद्र यतींद्र
शची (इंद्र की पत्नी) + इंद्र शचींद्र (इंद्र)
सुधी (ज्ञान) + इंद्र सुधींद्र (विद्वान)
(ई + ई=ई)
नदी + ईश्वर नदीश्वर
नारी + ईश्वर नारीश्वर
फणी (साँप) + ईश्वर फणीश्वर (शेषनाग)
मही (पृथ्वी) + ईश महीश (राजा)
रजनी + ईश रजनीश (चंद्रमा)
श्री (लक्ष्मी) + ईश श्रीश (विष्णु)
सती + ईश सतीश (शिव)


(iii) उ/ऊ + उ/ऊ
उ + उ
अनु + उदित अनूदित (अनुवाद किया हुआ)
कटु (कड़वा) + उक्ति कटूक्ति
गुरु + उपदेश गुरूपदेश
बहु + उद्देशीय बहूद्देशीय
भानु + उदय भानूदय
मंजु (सुंदर) + उषा (भोर) मंजूषा
मधु (बसंत) + उत्सव मधूत्सव
मृत्यु + उपरांत(उपर+अंत) मृत्यूपरांत
लघु + उत्तम लघूत्तम

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