उद्यान विज्ञान (Horticulture)
Latin word
Horticulture
Hortus (Garden) Cultura (Cultivation)
✓ Garden
✓ Latin
✓ Gyrden- to enclose
- उद्यान विज्ञान कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसमें उद्यानिकी फसलों का अध्ययन किया जाता है।
- उद्यान विज्ञान का स्वर्णिम काल 19 वीं शताब्दी को माना जाता है।
- विश्व में जनक- लिबर्टी हेडे बेली (USA)
- भारत में जनक M. H. मोरिगौड़ा (M.H.)
- भारतीय आधुनिक उद्यान विज्ञान के जनक- KL चड्डा ।
शाखाएँ (Branches)
1. Pomology (फल विज्ञान)
• लैटिन ग्रीक 2 भाषाओं से मिलकर बना है।
• Pomum (Fruits) Logous (To study)
• उद्यान विज्ञान की वह शाखा जिसमें फलों की खेती का अध्ययन किया जाता है, फल विज्ञान कहलाती है।।
• भारत में फल विज्ञान के जनक KL चड्ढा को माना जाता है।
• सिस्टमैटिक पोमोलॉजी के जनक डी कंडोली को माना जाता है |
2. Olericulture {सब्जी विज्ञान}
•लेटिन भाषा का शब्द है।
•Oleris (Herbaceous या शाकीय पौधे) ultura (खेती करना)
• उद्यान विज्ञान की वह शाखा जिसमें सब्जियों की खेती का अध्ययन किया जाता है।
3. Floriculture (फुल विज्ञान)
•Latin word
• Floris + Cultura
• उद्यान विज्ञान की वह शाखा जिसमें फूलों की खेती का अध्ययन किया जाता है।
4. रोपण फसलें (Plantation Crops)
• उद्यान विज्ञान की वह शाखा जिसमें ऐसी फसलों का अध्ययन किया जाता है जिसकी रोपाई हेतु विस्तृत क्षेत्र की आवश्यकता हो तथा रोपाई दूरी अधिक रखी जाती हो।
• उदाहरण- नारियल, चाय, कॉफी, काजू, कहवा, रबड़, पान इत्यादि । यह फसलें भारत के दक्षिणी एवं पूर्वी हिस्से में लगाई जाती है।
• चाय की खेती सीपीकल्चर कहलाती है। चाय को पेय पदार्थों की रानी कहते हैं।
• लेटिन भाषा का शब्द है।
5. मसाला फसलें (Spices Crops )
• मसाला वाली फसलों का अध्ययन किया जाता है।
• मसालों का राजा काली मिर्च
• मसालों की रानी-छोटी इलायची
• मसालों का देश भारत ( वास्कोडिगामा ने कहा था)
• विश्व में सर्वाधिक उत्पादन भारत ।
6. सुगंधित व औषधीय पादप
• जिन पादप भागों से आवश्यक तेल प्राप्त किया जाता है उन्हें सुगंधित फसलें कहते हैं।
• जिन पादप भागों से किसी बीमारी उपचार के लिए औषधि रसायन प्राप्त किया जाता है, औषधीय पादप कहलाते हैं।
• औषधीय महत्व पौधों में द्वितीयक उपापचयी रसायन के कारण होता है।
• औषधीय पौधों के महत्व का अध्ययन या इससे प्राप्त होने वाली औषधि के महत्व का अध्ययन भेषज विज्ञान Pharmecognosy) कहलाता है।
7. Arboriculture
लेटिन भाषा का शब्द है।
• Arbor (Woody Plants-कष्ठीय पौधा) Cultura (Cultivation)
• इस उद्यान विज्ञान की शाखा में झाड़ियों एवं लताओं का अध्ययन किया जाता है।
8. Viticulture
• लेटिन भाषा का शब्द है।
• अंगूर की खेती का अध्ययन विटीकल्चर कहलाता है।
• ओईनोलॉजी अंगूर से शराब बनाने का अध्ययन कहलाता है।
9. Landscape Gardening (भूदृश्य बारावानी)
• अलंकृत बागवानी का अध्ययन किया जाता है।
10 post harvest technology
• फल, सब्जियों एवं फुलों की तुड़ाई उपरांत तकनीकों का अध्ययन किया जाता है।
उद्यान प्रबंधन
•उद्यान का रेखांकन एवं योजना
•गड्डे दुरी
•संधाई
•कटाई-छटाई
•प्रतिकूल मौसम
•फुल एवं फल लगने का समय
उद्यान का रेखांकन एवं योजना (Layout and Planning of Orchard) :-
स्थान चुनाव
(i) जगह (Site)
• यह भोगोलिक क्षेत्र गाँव, कस्बे, शहर, हाइवे को अंगित करता हैं।
(ii) स्थान (Palace)
• यह जगह की स्थलाकृति उंचाई, जल स्त्रोत तथा पेड़ के व्यवहार को बताता हैं।
स्थान को प्रभावित करने वाले कारक
a. भूमिः
• बाग के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है।
•भूमि की स्थिति बाजार अथवा मुख्य सड़क के पास होनी चाहिए।
•मृदा का pH मान 6.5-7.5 होना चाहिए।
•मृदा की गहराई कम से कम 2m होनी चाहिए।
• मृदा ढाल 5% से अधिक नहीं होना चाहिए।
•मृदा ढाल उत्तर से दक्षिण होना चाहिए।
•पपीता एवं बेर बड़े कणाकार वाली मृदा में अच्छे पनपते हैं।
• आम, नीम्बू, अंगूर अधिक उर्वरता चाहने वाले पोधें हैं।
• आंवला, फालसा कम उर्वरता चाहने वाले पोधे हैं।
b. जलवायु
• जलवायु के अनुसार ही फल अथवा किस्म का चयन किया जाता है।
C. सिचाई व्यवस्था
•सिंचाई की व्यवस्था को देखते हुए फल का चयन करना चाहिए।
•जैसे- पानी की कमी वाले क्षेत्रों में बेर, आंवला, खजूर, बेलपत्र, अनार आदि को चुना जा सकता है।
•अधिक पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में केला, पपीता, आम आदि फल वृक्षों का चुनाव करना चाहिए बड़े फल वृक्षों में सिंचाई की उत्तम विधि छल्ला विधि होती है।
• छोटे फल वृक्ष जैसे पपीता, फालसा, करौंदा, केला, अन्नानास, अंगूर आदि में सबसे अच्छी विधि बूंद-बूंद सिंचाई विधि होती है।
उद्यान का रेखांकन (Layout of orchard):-
• बाग में फल वृक्ष लगाने के लिए स्थान को चिन्हित करना उद्यान का रेखांकन कहलाता है। • बाग़ का रेखांकन करते समय बाड़ अथवा दीवार से Base Line की दूरी पौध रोपण दूरी से आधी होनी चाहिए ।
i. वर्गाकार विधि (Square Method) :-
• यह विधि सबसे आसान तथा सबसे प्रचलित विधि है।
• लाइन से लाइन की दूरी तथा पौधे से पौधे की दूरी समान होती है उसे वर्गाकार विधि कहते हैं।
• चार पौधे मिलकर एक वर्ग का निर्माण करते हैं।
• बाग लगाने की यह सबसे उत्तम विधि है इसमें अंतर उद्यानिकी क्रियाएं आसानी से की जा सकती है।
•वर्गाकार विधि में पौधों की संख्या = क्षेत्रफल÷ (PXR)
ii. आयताकार विधि (Rectangular System):-
• पौधों की संख्या = क्षेत्रफल/(PXR)
iii. पंचभुजाकार/पूरक विधि / Quincunx Method / Dignoal Method :-
• पंचभुजाकार विधि वर्गाकार विधि के समान ही होती है।
• इसमें प्रत्येक वर्ग के मध्य में एक पूरक पौधा लगा दिया जाता है।
• पंचभुजाकार विधि में वर्गाकार विधि से लगभग दो गुणा अधिक पौधे लगते हैं।
• पूरक पौधा:- ऐसा पौधा जो पंचभुजाकार विधि में प्रत्येक वर्ग के मध्य अस्थायी रूप से लगाया जाता है। यह पौधा आकार में छोटा होता है और कम समय में फलन देना प्रारंभ कर देता है जैसे ही मुख्य पौधे फलन देना प्रारंभ करते हैं इसे खेत से निकाल दिया जाता है। इसलिए पूरक पौधे लगाने का उद्देश्य जब तक मुख्य फल वृक्ष फलन देना प्रारंभ न करे तब तक अतिरिक्त आय प्राप्त करना है।
•सबसे अच्छा पूरक पौधा पपीता है।
• इसके अलावा फालसा, अन्नानास तथा केले को भी पूरक पौधे के रूप में काम में लेते हैं।
• शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पूरक पौधा फालसा है।
•पौधों की संख्या = क्षेत्रफलx 2/(पौधे से पौधे की दुरी x लाइन से लाइन की दुरी)
iv. षट्भुजाकार विधि या समबाहु त्रिभुजाकार (Hexagonal System & Equilateral Triangular):-
• इस विधि में 6 पौधे मिलकर एक षट्भुज का निर्माण करते हैं।
• इसमें 7 वां पौधा केंद्र में लगा दिया जाता है।
• इस विधि में वर्गाकार विधि की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक फल वृक्ष लगते हैं।
• सघन खेती अथवा बाजार के आस-पास वाले क्षेत्रों में बाग लगाने की सबसे अच्छी विधि षट्भुजाकार विधि है।
• पौधों की संख्या - क्षेत्रफल/(एकल पौधे द्वारा घेरा गया क्षेत्र )
• एकल पौधे द्वारा घेरा गया क्षेत्र = 3/4 x Ax A x 2
• जहाँ, A = पौधों के बीच त्रिभुज या रिक्ति के किनारे की लंबाई
v. त्रिभुजाकार विधि (Triangular System) : • इसमें तीन पौधे मिलकर त्रिभुज का निर्माण करते हैं ।
•सर्वाधिक स्थायी पौधे त्रिभुजाकार विधि में लगते हैं।
• त्रिभुजाकार विधि आड़े तिरछे खेतों में (जिनकी ज्यामिति असमान हो) अपनायी जाती है।
vi. कंटूर विधि/ समोच्चय विधि:-
•यह विधि पहाड़ी क्षेत्रों में अपनाई जाती है।
• जहाँ ढलान 10% से कम होता है वहां कंटूर बनाते है।
• जहां ढलान 10-40% तक होता है वहां पर ट्रेस बनाते है।
• 40% से अधिक ढलान होने पर खेती करना सम्भव नहीं होता है।
फल वृक्षों के लिए गड्ढों का आकार :-
•बड़े आकार - 1×1×1 मीटर
आम, कटहल, जामुन,बीलपत्र, अमरूद, खजूर,इमली, आंवला, चीकू
•मध्यम आकार - 75× 75× 75 cm
नींबू वर्गीय फल, अनार, सेब, नाशपाती, लहसुआ
•छोटे आकार -50× 50× 50 cm
केला, अनानास, फालसा, अंगूर , करौंदा
• बाग में पौध रोपण के एक माह पहले गड्डे मध्य मई में खोदने चाहिए।
• पर्णपाती पौधों के लिए गड्ढे जनवरी में खोदने चाहिए।
•दीमक नियंत्रण हेतु गड्ढे भरते समय 50-100 gm क्लोरोपायरीफॉस अथवा मिथाइल पैराथियान प्रति गड्ढे में मिलाते हैं।
•पौध रोपण से 2-3 दिन पहले गड्ढे को भरकर सिंचाई कर देते हैं।
फल वृक्षों के लिए पौधरोपण दूरी
फल नाम | पौधरोपण दूरी | पौध संख्या |
---|---|---|
इमली | 12×12 m | 70 |
जामुन | 12×12 m | 70 |
आम | 10×10 m | 100 |
बेलपत्र | 10×10 m | 100 |
आंवला | 9×9 m | 124 |
लीची | 9×9 m | 124 |
अमरूद | 8×8 m | 157 |
बेर | 8×8 m | 157 |
खजूर | 8×8 m | 157 |
नींबू | 6×6 m | 278 |
सेव | 6×6 m | 278 |
लहसुआ | 6×6 m | 278 |
अनार | 5×5 m | 400 |
केला | 3×3 m | 1112 |
अंगूर | 3×3 m | 1112 |
पपीता | 3×3 m | 1112 |
करौंदा | 3×3 m | 1112 |
अन्नानास | 3×3 m | 1112 |
आम - आम्रपाली | 2.5×2.5 m | 1600 pt/hac |
आम की मल्लिका | 3×2.5 m | 1333 pt/hac |
पपीता की पूसा नन्हा | 1.2×1.2 | 6400 pt/hac |
केला की रोबस्टा | 1.5×1.5 | 4400 pt/hac |
ड्वार्फ क्वेंडिश | 1.5×1.5 | 4400 pt/hac |
अमरूद की इलाहाबाद सफेदा | 1×2 | 5000 pt/ac |
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